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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

8. रंगमंचीय विशेषताएँ

प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।

अथवा
नाट्यशिल्प अथवा रंग-सम्प्रेषण की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

साहित्य की हर विधा परिवर्तन की प्रक्रिया को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ग्रहण करती है और परिवर्तन की प्रक्रिया की प्रतिक्रिया द्वारा अपनी भूमिका निभाती है। रंगमंच, नाटक, संगीत, नृत्य आदि द्वारा अपनी प्रतिक्रिया के अभिव्यक्ति देता है। रंगमंच दृश्यत्व को लेकर चलता है। इसलिए उसकी अभिव्यक्ति जनजीवन को जल्दी आकृष्ट करती है और उसका प्रभाव भी दर्शकों पर गहरा पड़ता भारतीय रंगमंच ग्यारहवीं शताब्दी से लेकर अट्ठारहवीं शताब्दी तक अनमत रह नाटककार को रंग चंतना जितनी जीवत होगी, नाटक उतना ही प्रभावी होगा। आज मानव अत्यधिक व्यक्त और भौतिकता से त्रस्त है। इन स्थिति में वृद्धि।

नाटक का मंच - पंच भी तैयार किया जा सकता है पर, यह केवल साधन-सम्पन्न थियेटरों के लिए सम्भव है। जटिल मंच से रंग मंच की विस्तार नहीं मिल सकता। यहाँ पर कि सहज यथार्थवादी मंच भी आज के लिए विशेष उपादेय नहीं लगता। खुला मंच वर्तमान में अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है।

रंगमंच एक सामूहिक कला है। यह नाटक की कसौटी है। नाटक की अपेक्षा के अनुसार मंच और रूप-सज्जा आवश्यक है। न तो रंगमंच को प्रदर्शनी बनाया जायें और न पात्रों को विदूषक।

नाटक के आरम्भ में पूर्व रंग का विधान धार्मिक तथा संगीतिक क्रियाओं का मिश्रित रूप होता था। नाटक के आरम्भ में संगीत या वाद्यवादन की परम्परा शास्त्रीय नाटकों में ही नहीं मिलती वरन् नाट्य के उन रूपों में भी मिलती है जो आम जनता के बीच लोकनाट्य के रूप में प्रचलित थे। नाट्यारम्भ में पूर्व रंग के अन्तर्गत संगीत योजना का सूक्ष्म विवरण नाट्यशास्त्र में मिलता है। भरतमुनि ने पूर्व रंग के विभेद बताये हैं तथा इसमें मंच पर विभिन्न वाद्यों के वादकों के बैठने के स्थान को “प्रत्यासार" कहा है। गायक-गायिकाओं के बैठने के स्थान को 'अवतरण' तथा गायन आरम्भ करने को आरम्भ कहा जाता है। "आश्चावणा' में वाद्यों को मिलाकर स्वर की दृष्टि से एक रूपता लाई जाती है। इसके बाद 'गोदि विधि' आरम्भ होती है।

पूर्व रंग के पश्चात् नाटक आरम्भ होता था। इसमें ध्रुवाओं का प्रयोग किया जाता था। छन्दोबद्ध गीतों के प्रयोग को 'ध्रुवा' कहा जाता था। ध्रुवा से मुक्त गान पाँच प्रकार का होना था - प्रवेश गान, निष्काम-गान, आक्षेप गान, प्रासदिक गान तथा आन्नतर गान 'प्रदसादिक मथान्तरम गानं पंचविध ज्ञेयं ध्रुवा योग समन्वितम्। " रंगमंच के कुछ प्रकारों में निम्न प्रमुख हैं-

1. लोक रंगमंच - खुला रंगमंच,
2. यथार्थ रंगमंच,
3. प्रतीकात्मक रंगमंच,
4. पारसी रंगमंच,
5. आधुनिक रंगमंच।

1. लोक रंगमंच - खुला रंगमंच - विस्तृत भू-भार पर खुले मैदान में बनाया जाता है। जो रामलीला - रासलीला - स्वांग आदि के लिए उपयुक्त है। देवी जागरण में इस रूप का प्रयोग मिलता है।

2. यथार्थ रंगमंच - नाट्य स्थितियों घटनाओं को यथावत् रखकर उन्हें मूर्त रूप देकर मंच निर्माण किया जाता है। इससे वातावरण निर्माण में सहायता मिलती है।

3. प्रतीकात्मक रंगमंच - इसमें प्रतीकों का सहारा लिया जाता है। वस्तु स्थिति के उद्घाटन हेतु संकेतों से ही काम चला लिया जाता है।

4. पारसी रंगमंच — यह पारसी थियेटरों का अपना मंच था जो आगे चलकर बन्द हो गया।

5. आधुनिक रंगमंच - पुरातन रंगमंच, प्रेक्षागृह - दर्शक दीर्घा इत्यादि की धारणा को समाप्त करता है। इसमें नेपथ्य का कोई स्थान नहीं होता। अभिनेताओं के बैठने तथा सामग्री रखने तक का स्थान नहीं होता है। इनमें केवल गाने-बजाने जैसे कार्यक्रम हो सकते हैं। प्रकाश - संयोजन के माध्यम से रंग- सम्प्रेषण सम्पन्न करने का प्रयत्न किया जाता है। कम्प्यूटरीकृत वाद्यों से ध्वनि संयोजन किया जाता है। अभिनय के मौलिक सिद्धान्तों का प्रायः निषेध होता है।

शैली - हमारे संस्कृत नाटक आन्तरिक संवेदना से मुक्त हैं। उनकी पूरी संरचना में श्लोकों में अभिनय शैली और अभिनेता की लचीली देहभाषा में, नृत्यवत गतियों, मुद्राओं में ही हम इस आन्तरिक संवेदना को पाते हैं। गीत-संगीत की लय और आवेग लोक नाटकों से लिया गया है। भारतीय नाटकों और रंगमंच में संस्कृत, लोक तथा पारसी रंगमंच की विभिन्न शैलियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। रामायण की प्रदर्शन परम्परा में वाचन- गायन दोनों शैलियाँ विद्यमान हैं। इनसे रंगभाषा और अभिनय को सघनता, लय वैविध्य, ध्वनि संयोजन, एकाग्रता और आन्तरिकता मिलती है।

पश्चिम के यथार्थपरक रंगमंच स्टेज पर रखे जाने वाले साज-सामान की एक सीमा निर्धारित है। असज्जित चबूतरे, दृश्यबंध के अभाव, गति और चरित्र चित्रण के अवरोधन को पश्चिमी रंगमंच में अभिव्यंजकता को ऊपर नियन्त्रण माना जाता है। पश्चिमी थियेटर मंचीय साज-सज्जा के अभाव की धीरे-धीरे दूर करता गया और यथार्थ की सृष्टि के लिए स्टेज प्रॉपटी का अधिक उपयोग करने लगा था।

शेक्सपीयर के रंगमंच पर वास्तविक संसार संकेतिक करने के लिए पर्याप्त साधन जुटाये जाते थे। फिर भारतीय स्थिति को देखते हुए, सच तो यही है कि वे भारतीय रंगमंचीय कार्यकलापों का अत्यन्त सीमित, कृत्रिम और अव्यवहारिक पक्ष ही हो सकते हैं।

रंगमंचीय शिल्प – निश्चयतः हिन्दी का रंगमंच प्राय: सदा, सरल, व्यावहारिक और कामचलाऊ ही अधिक रहा है या फिर पारसी रंगमंच में अति की भव्यता, भड़काऊपन, चमत्कारमूलता एवं तकनीक विशेष भरमार रही मिलती है। साधनों की प्रचुरता एवं यान्त्रिक सुविधाएँ भी इनमें भी अधिक रहीं। इधर, अधिकांशत: हिन्दी रंगमंच में तो यही हाल मिलता है कि स्वयं नाटक सम्बन्धी लोग नाटक करते घबराते रहे। 'इप्टा' इसका स्वयं उदाहरण है जो मात्र काले परदे से ही काम चलाते और नाटक करते रहे हैं। लगभग यही स्थिति वेशभूष आदि की रही। आज भी रामादि पात्रों तक को विदेशी, मुख्यतः यूनानी वेशभूषा में देखा जा सकता है।

विविध घटक - वस्तुतः 'नाटक' को मंचित करते समय नाना घटकों का समन्वय किया जाता है। निश्चत प्रकाश - संयोजन, ध्वनि, संयोजन तथा संगीत-योजनादि इसी तरह के किन्तु महत्त्वपूर्ण घटक इस दृष्टि से भारतीय नाटकों को देखें तो पाते हैं कि भारत में अधिकांशतः नाटक रात को ही होते हैं। जहाँ तक प्रश्न है-मंच स्थिति अपनी प्रकाश योजना का तो (बिजली से पूर्व तो) यह कार्य प्रायः हण्डों आदि से ही लिया जाता था और बाद काफी समय तक रंगीन कागजों आदि का प्रयोग करके रंगीन वातावरण बनाने के प्रयास होते थे। आज तो नाना यान्त्रिक साधन हो जाने से यह कार्य निश्चत: सरल हो गया है। इसी तरह, वेशक पहले अभिनेतादि अपनी ही आवाज पर निर्भर रहते थे किन्तु अब तो प्रत्यक्षत: परोक्षत: माइकादि का प्रयोग किया जाने लगा है। यही बात संगीतान्तर्गत प्रयुक्त वाद्ययन्त्रों और वाद्यकारों पर चरितार्थ हुई मिलती है। ध्यान दे तो कुछ दशक पहले तक मात्र भारतीय वाद्यादि प्रयोग किये जाते थे, किन्तु आज पाश्चात्य और विद्युतमय वाद्यों का दबदबा बन चुका है। इसी तरह मेकअप आदि के क्षेत्र में भी अत्यन्त उन्नति हो चुकी है।

आज सच तो यह है कि 'नाटक' प्राय: हाशिये पर है। कुछेक बड़े शहरों, बड़ी संस्थाओं व्यावसायिक वृतित वालों को छोड़ दे तो नाटक प्रायः ग्राम्य समाज में ही सिमट कर रह गया है। जहाँ 'अद्भुत लगन' होने पर भी प्रायः साधनों का अभाव ही रहता है और 'कामचलाऊ' वाली स्थिति ही अधिक होती है। यहाँ का दर्शक भी।

प्रायः जनसामान्य ही रहता है। आज भी भारत में नाट्य गृह, नाट्य संस्थाएँ, नाट्यशिक्षण आदि अत्यन्त है। फलतः नाटक और उसके अभिन्न अंग रंग-मंच और तत्सम्बन्धी शिल्प का उतना विकास नहीं हो पा रहा है, जितना आवश्यक है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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